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Description

मोपला

रात्रि में ग्राम में अग्निकाण्ड होने पर, आग में जान-बूझकर तेल डालना, जितना समाजविद्रोही एवं पापपूर्ण कृत्य है, उतना ही इस आग की ओर से नेत्र मूंदकर रहना तथा यह मानना भी सार्वजनिक हित की दृष्टि से हानिकारक ही है कि आग लगी ही नहीं ! जैसे अग्नि में तेल डालना, आग बुझाने का उपाय नहीं, उसी प्रकार “आग लगी है, उठो भागो” आदि की आवाज इस भय से न लगाना कि कहीं सोते हुए लोगों की नींद न टूट जाए, उस अग्नि से ग्राम को बचाने का वास्तविक उपाय नहीं है। वास्तव में यह एक सामाजिक पाप है।

इसी भौति में यह समझता है कि मलावार में मोपलों के उपद्रव के समय घटित भयंकर घटनाओं को अतिरंजित और अस्फुट-रंजित न करते हुए अथवा ज्यों का त्यों विवरण हिन्दू मात्र के कानों तक पहुंचाना और उनके घातक कर्म को इनके हृदय में बेटाना, देशवासीयों के लिए हितकारी है। इसी दृष्टि से यह कथा लिखी गई है।

यद्यपि इम पुस्तक में उल्लिखित नाम और ग्राम काल्पनिक हैं, फिर भी इसमें जिन घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है उनमें वस्तुस्थिति का यथातथ्य प्रतिविग्य ही है ! इस वर्णन में मोपलों के उपद्रवों के समय हुई भयंकर और भव्य घटनाओं को अतिरंजित करने का प्रयत्न नहीं किया है।

पृथक व अलग-अलग स्थानों पर घटित हुई घटनाओं को एक सुगठित कथा के सूत्र में पिरोने के लिए नाम, ग्राम व काल तथा वेला की जितनी काट-छाँट आवश्यक थी, केवल उतनी ही की गई है ! किन्तु ऐसा करते हुए भी इस उपद्रव के उददेश्य, इसकी भूमिका, कृत्यों अथवा घटनाओं की संगति और मर्म के ऐतिहासिक स्वरूप लेश मात्र भी न भटके ऐसा प्रयास किया गया है।

मलावार के उपद्रव का प्रत्यक्ष अवलोकन कर आर्यसमाज ने उस उपद्रव से पीड़ित लोगों के मध्य अनेक वर्ष काम करते हुए सैकड़ों पीड़ित हिन्दुओं और मोपला उपद्रवियों के कार्य उनके हस्ताक्षरों सहित “मलावार का हत्याकाण्ड” के नाम से आर्य समाज ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किए थे। इस पुस्तक में श्रीयुत देवघर द्वारा मलावार में पीड़ितों की सहायता करने का पुण्यकृत्य करते हुए वहाँ की परिस्थिति का इतिवृत्त भी प्रकाशित किया था। उसी विवरण और जानकारी के आधार पर यह कथा लिखी गई है। जिन पाठकों के लिए सम्भव हो वे इस पुस्तक तथा अलि मुसेलियर के अभियोग का विवरण अवश्य ही पढ़ें ! ‘मलावार का हत्याकाण्ड’ नामक पुस्तक में ही लाला खुशहालचन्द खुरसन्द के प्रत्यक्ष रूप से देखे गए कुएँ’ का वृत्तान्त ( पृष्ठ 113-115) जिसमें पन्नीकर, तेहअस्मा, थल कुर्र राम, सनको जी नायर, की हत्या कर तथा कैमियन को मृत समझकर इस कुएँ में फेंके जाने का वर्णन है। ईश्वर कृपा से केमियन के पुनः जीवित वचने, केशयन नम्वोदरी, कंजुनी, करुप व चमकुरी मंजेरी इत्यादि स्त्री-पुरुषों द्वारा अपने भयंकर अनुभवों का जो विवरण, जो उन्होंने हस्ताक्षरों सहित दिया था इसी में प्रकाशित किया गया है। इन्हें पाठक अवश्य पढ़ें। उससे पाठकों को यह विदित हो सकेगा कि पुस्तक में दिया गया विवरण कितना यथार्थ है।

ऐसा अवसर अपने राष्ट्र के समक्ष पुनः उपस्थित न हो पाए इसके लिए किन उपायों का अवलम्बन किया जाना चाहिए, इस प्रश्न को समाधानकारक रीति से सुलझाया जाना आवश्यक है। सत्य को दृढ़ता सहित सामने रखकर हिन्दू-मुसलमान दोनों ही इस प्रश्न को समान रूप से सुलझाने में प्रवृत हों। ईश्वर से मेरी उत्कण्ठा-सहित यही प्रार्थना है।
– लेखक