राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की समूची कार्यपद्धति में ‘कार्यकर्ता’ का महत्व सर्वाधिक है । संघ की सारी शक्ति संघ के कार्यकर्ताओं में है। कार्यकर्ता ही संघकार्य का आधार है।
कार्यकर्ता का अधिष्ठान, व्यक्तिमत्व तथा व्यवहार इस विषय का विवेचन इस ग्रंथ में मा. दत्तोपंत ठेंगडीजी ने किया है। संघकार्य के प्रदीर्घ अनुभवों के आधर पर मा. दत्तोपंतजी ने लिखित या मौखिक माध्यम के द्वारा विविध अवसरों पर जो विचार प्रकट किए हैं उनका सुसूत्र संकलन इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का सुअवसर ‘भारतीय विचार साधना पुणे प्रकाशन को प्राप्त हुआ। कार्यकर्ता में कौनसे गुण आवश्यक हैं उसने किन बातों से दूर रहना चाहिए यह और ऐसे अनेक विषयों पर मा. दत्तोपंतजी ने किया हुआ मूलगामी चिंतन, मार्गदर्शन इन बातों की यह ग्रंथ पढ़ने पर अनुभूति होगी ।
संघ के प्रवक्ता और ज्येष्ठ कार्यकर्ता मा० मा. गो. वैद्य उपाख्य बाबुराव वैद्यजी ने इस ग्रंथ के लिए लिखी हुई प्रस्तावना से भी इस ग्रंथ की विशेषता सिद्ध होगी । अत्यधिक व्यस्तता से समय निकालकर उन्होने इस ग्रंथ के लिये प्रस्तावना लिखी। इसके लिए ‘भारतीय विचार साधना’ उनकी आभारी है। पुस्तक के संकलन, संपादन का काम ज्येठ कार्यकर्ता श्री बापू साहेब केंदूरकर ने किया है।
जैसा कि मा.मा.गो. वैद्यजी ने प्रस्तावना में कहा है, यह ग्रंथ ‘संघोपनिषद’ सिद्ध होगा, इस बात का हमें विश्वास है ।
-प्रकाशक